प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के कारण एवं परिणाम (Cause of the First World War)


  पृष्ठभूमि:-

प्रथम विश्व युद्ध उग्र राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद एवं सैन्यवाद का त्रासद परिणाम था। 19वीं सदी की यूरोपीय राजनीति ने जो दिशा पकड़ ली थी वह स्वाभाविक रूप में प्रथम विश्व युद्ध की ओर चली गई। इसी आधार पर 19वीं सदी एक लंबी 19वीं सदी के रूप में जानी जाती है जो 1789 से आरंभ होकर 1914 में समाप्त हुई। प्रथम विश्वयुद्ध के साथ ही उस सदी का अंत हुआ था।


प्रथम विश्व युद्ध  (1914-18) के कारण एवं परिणाम  (Cause of the First World War)





प्रथम विश्व युद्ध के कारणः- (Because of the First World War)

अगर हम प्रथम विश्व युद्ध के कारणों पर विचार करते हैं तो हमें यह ज्ञात होता है कि यह युद्ध जटिल परिस्थितियों की उपज था तथा इसके लिए राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, वैचारिक एवं कूटनीतिक कारक सभी उत्तरदायी थे।


1. राजनीतिक कारक  ( Political factors )

1871 ई० की फ्रैंकफर्ट की संधि के पश्चात् यूरोपीय राजनीति में एक प्रकार का कूटनीतिक आंदोलन हो चुका था और 1907 ई० तक दो सैनिक गुट;  यथा- जर्मनी, ऑस्ट्रिया एवं इटली के त्रिगुट तथा ब्रिटेन, फ्रांस एवं रूस के त्रिगुट (Triple Entente) अस्तित्व में आ चुके थे। परंतु ये दोनों रक्षात्मक गुट थे आक्रामक नहीं। 

फिर भी निम्नलिखित कारणों से गुटबंदी ने यूरोप को युद्ध के कगार पर ला दिया |

  • गुटबंदी के कारण दो देशों के बीच उभरने वाला कोई भी विवाद अनायास ही एक बड़ा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन जाता था।
  •  दोनों गुटों ने एक-दूसरे से सशक्त दिखने के लिए व्यापक सैन्य तैयारी आरंभ कर दी। इस कारण नीति-निर्माण का काम धीरे-धीरे राजनीतिक नेतृत्व के हाथों से निकल कर सैनिक नेतृत्व के हाथों में चला गया।
  • दोनों पक्षों ने अपनी सैनिक तैयारी को उचित करार देने के लिए अपनी जनता को गुमराह किया और शत्रु पक्ष की तैयारी को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने का प्रयास किया। इस कारण जनमत भी दूषित हो गया।
  • बाल्कन संकट ने यूरोप की लगभग सभी महत्वपूर्ण शक्तियों को उलझा दिया था तथा अखिल स्लाववादी और अखिल जर्मनवादी आंदोलन ने यूरोप को युद्ध कगार पर ला दिया।


2. आर्थिक कारक ( Economic Factors )

  • 1. जर्मन एकीकरण के पश्चात् जर्मनी का तीव्र औद्योगीकरण प्रारंभ हुआ। इस कारण बाजार के लिए ब्रिटेन और जर्मनी के बीच प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गई तथा इसने दोनों के बीच . तनाव को जन्म दिया।
  •  एशिया और अफ्रीका में साम्राज्यवादी प्रसार के कारण यूरोपीय शक्तियों के बीच टकराहट पैदा होने लगी और अन्य महाद्वीपों में होने वाली टकराहट ने यूरोप में भी तनाव को बढ़ा दिया।

3. सामाजिक कारक ( Social Factors )

  • मार्क्सवाद के प्रभाव ने अधिकांश यूरोपीय देशों में वर्ग संघर्ष को प्रोत्साहन दिया था और वहाँ मार्क्सवादी क्रांति का खतरा उत्पन्न हो रहा था। इस कारण से यूरोपीय सरकारों ने आंतरिक संघर्ष को बाहर की ओर मोड़ने का प्रयास किया। इससे सामाजिक साम्राज्यवाद को बल मिला।
  • राजनीति में जनता की सक्रियता ने भी एक अलग प्रकार की जटिलता पैदा कर दी। लगभग सभी यूरोपीय सरकारों पर अपने जनमत का दबाव था। जो सरकार पीछे हटती. उसे अपनी जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ता।

4. वैचारिक कारक या  बौद्धिक कारक  ( conceptual factor or intellectual factor )

19वीं सदी के कुछ विचारक भी अनजाने ही सही युद्ध को वैधता और प्रोत्साहन दे रहे थे। उदाहरण के लिए, 19वीं सदी के जर्मन दार्शनिक हीगेल ने 'राष्ट्रीय गौरव' पर अत्यधिक बल दिया था और घोषित किया था कि राष्ट्र इस पृथ्वी पर एक दैवीय विचार है। इससे राष्ट्र के प्रति समर्पण के भाव को बल मिला। उसी प्रकार, हरबर्ट स्पेंसर जैसे ब्रिटिश चिंतक द्वारा 'सामाजिक डार्विनवाद' पर बल दिया गया था, जिसमें शक्तिशाली को बढ़ने एवं कमजोर को मिट जाने की प्रवृत्ति को समर्थन देने की बात कही गई थी। उसके विचार में युद्ध इस प्रक्रिया का माध्यम है। बताया जाता है कि यह भी एक कारण था जिससे यूरोप की जनता में युद्ध की प्रवृत्ति को बल मिला। जब ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की, तो लाखों लोग वियना की सड़कों पर उतरकर खुशियाँ मना रहे थे।


5. कूटनीतिक कारक ( Diplomatic Factor )

युद्ध को रोकने में कूटनीति एक कारगर उपाय सिद्ध हो सकती थी, परंतु निम्नलिखित कारणों से यह कारगर सिद्ध नहीं हो सकी |

  • अमेरिकी विशेषज्ञ हेनरी किसिंगर की पुस्तक 'वर्ल्ड ऑर्डर' के अनुसार, विशेषकर सेडान के युद्ध के पश्चात् तथा रेलवे एवं वापचालित जहाजों के प्रयोग के बाद युद्ध की गति काफी त्वरित हो गई थी, परंतु कूटनीति उस गति से त्वरित नहीं हो सकी, निर्णय लेने में काफी विलंब होता था।
  • प्रथम विश्व युद्ध से ठीक पूर्व कूटनीतिक प्रक्रिया अवरुद्ध हो गई थी। यदि कूटनीतिक प्रक्रिया चल रही होती, तो युद्ध का कोई-न-कोई समाधान ढूंढ लिया गया होता। जैसा कि हम जानते हैं कि प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण सेराजेवो हत्याकांड था। दरअसल, ऑस्ट्रिया के राजकुमार आर्चड्युक फर्डिनेण्ड की हत्या बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में कर दी गई। फिर इस हत्या ने प्रथम विश्वयुद्ध का रूप ले लिया। हालाँकि, इससे पूर्व भी इटली एवं पुर्तगाल के शासकों की हत्या हो चुकी थी, परंतु इसके कारण कोई युद्ध घटित नहीं हुआ था। वस्तुत: इस काल में युद्ध घटित होने का बड़ा कारण था- यूरोपीय राष्ट्रों के बीच कूटनीतिक प्रक्रिया का अवरुद्ध हो जाना अगर उसकी तुलना हम 1950 तथा 1960 की दशक की. विश्व व्यवस्था से करते हैं तो मानो नाटो और वासां पैक्ट जैसे दो सैनिक गुट हों, परंतु संयुक्त राष्ट्र संघ अनुपस्थित हो।


क्या प्रथम विश्वयुद्ध को टाला जा सकता था? 

 पक्ष में 

  • यह सही है कि 20वीं सदी के आरंभिक दशक तक साम्राज्यवाद, सैन्यवाद, उग्र राष्ट्रवाद सभी एक जटिल स्थिति में पहुँच गए थे। विभिन्न देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया था। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों के साम्राज्यवादी विभाजन के पश्चात् यूरोपीय शक्तियाँ अब यूरोप में लौटने लगी थीं। इस कारण बाल्कन समस्या संकटपूर्ण स्थिति में पहुँच गयी थी। वहीं जर्मनी ने यूरोप के शक्ति संतुलन को  बिगाड़ कर रख दिया था।
  • फिर भी ऐसा मान लेना कि युद्ध अनिवार्य था अथवा इसे टाला नहीं जा सकता था, अपने आप में एक बहुत ही खतरनाक विचार है क्योंकि इस युद्ध के पश्चात् भी वैश्विक व्यवस्था में इस प्रकार की जटिलता आगे भी देखी गई। संपूर्ण शीतयुद्ध के काल में तनाव बना रहा था। शीतयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् अमेरिकी साम्राज्यवादी अहंकार, आतंकवाद की समस्या, उपराष्ट्रवाद तथा अरब क्षेत्र में उभरने वाले तनाव, कोई भी एक घटना एक विश्वयुद्ध को जन्म दे सकती थी। परंतु कूटनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से इस समस्या का समाधान खोजा जाता रहा है। प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व जो महत्वपूर्ण घटना हुई थी वह थी कूटनीतिक प्रक्रिया का अवरुद्ध हो जाना। वस्तुतः एक रचनात्मक कूटनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से इस युद्ध का समाधान खोजा जा सकता था।


विपक्ष में

20वीं सदी के आरंभिक दशक तक यूरोपीय व्यवस्था के समक्ष जो सबसे बड़ी चुनौती उपस्थित हो गई थी, वह थी यूरोपीय शक्तियों के हित में मौलिक टकराहट |

 इसे हम निम्नलिखित रूप से समझ सकते हैं |
  • जर्मनी के लिए यह युद्ध बाजार प्राप्त करने के लिए एक साधन था।
  • इटली के लिए यह एड्रियाटिक क्षेत्र में विस्तार करने का एक जरिया था।
  • फ्रांस के लिए यह जर्मनी के समानांतर अपनी खोयी हुई शक्ति एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करने का जरिया था।
  • रूस के लिए यह बाल्कन क्षेत्र में अपनी विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए उठाया गया कदम था।
  • ब्रिटेन के लिए यह शक्ति संतुलन बनाए रखने का माध्यम था।


        क्या इस युद्ध के लिए जर्मनी ही उत्तरदायी था ?

        • वर्साय की साँध के अनुच्छेद-231 में इस युद्ध का संपूर्ण दायित्व जर्मनी के सिर पर रख दिया गया था। इसका उद्देश्य था मित्र राष्ट्रों को उस अपराध से मुक्त करना, जो उन्होंने वर्साय की संधि के मध्य जर्मनी पर अत्यधिक कठोर शर्तें थोपकर किया था। सबसे बढ़कर यह विचार इतने व्यापक स्तर पर प्रचारित किया गया था कि जब 1990 में जर्मनी का पुनर्एकीकरण हो रहा था. उस समय भी जर्मन दायित्व का मुद्दा उभरकर आया था। किंतु अगर हम गहराई से परीक्षण करते हैं तो फिर जात होता है कि जर्मनी इस युद्ध के लिए अवश्य उत्तरदायी था, परंतु एकमात्र वही उत्तरदायी नहीं था, बल्कि अन्य यूरोपीय शक्तियाँ भी उसके लिए उत्तरदायी थी।
        • यह स्मरणीय है कि बाल्कन क्षेत्र में रूस समर्थित सर्विया ने अखिल स्लाववादी आंदोलन आरंभ कर बाल्कन क्षेत्र में काफी तनाव उत्पन्न कर दिया था। फिर सर्बिया के मुद्दे पर ऑस्ट्रिया को जर्मनी के द्वारा दिए गए समर्थन ने स्थिति को संकटपूर्ण बना दिया। वहीं रूस के द्वारा सर्बिया के समर्थन में खड़े हो जाने की घटना ने बाल्कन क्षेत्र के इस सीमित युद्ध को एक अखिल यूरोपीय युद्ध में रूपांतरित कर दिया। इसके अतिरिक्त, फ्रांस के द्वारा रूस को बिना शर्त समर्थन ने युद्ध को अनिवार्य बना दिया। अब सारी निगाहें ब्रिटेन पर टिकी हुई थीं। परंतु अगर कुछ अन्य शक्तियों ने कुछ करके युद्ध की स्थिति को बनाया, तो ब्रिटेन ने कुछ न करके यूरोप को युद्ध के कगार पर खड़ा कर दिया।

        युद्ध में विभिन्न देशों की भागीदारी तथा युद्ध का विस्तार

        सेंट्रल पॉवर-

         इसमें जर्मनी और ऑस्ट्रिया शामिल हुए। इटली, त्रिगुट का सदस्य होने के बाद भी इस समूह से बाहर रहा था क्योंकि उसका मानना था कि ऑस्ट्रिया कोई रक्षात्मक युद्ध नहीं लड़ रहा था, बल्कि आक्रामक युद्ध लड़ रहा था। आगे फिर वह मित्र राज्यों के साथ हो गया, परंतु सेंट्रल पावर के समूह में ऑटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया भी शामिल हो गए।

        मित्र राष्ट्र-

         इसमें आरंभ में ब्रिटेन, फ्राँस तथा रूस थे, फिर 1915 में लंदन की गुप्त संधि के आधार पर इटली को भी शामिल कर लिया गया तथा उसे यह आश्वासन दिया गया कि उसे एड्रियाटिक क्षेत्र में भू-भाग दिया जाएगा। उसी प्रकार, मित्र राष्ट्रों ने 1917 में जापान के 4 साथ एक गुप्त समझौता कर लिया, जिसमें जापान को आश्वासन दिया गया कि उसे चीन में शान्तुंग का क्षेत्र दिया जाएगा। परंतु, साथ ही अगर हम उपनिवेशों की भी गणना करते हैं तो इसमें चीन भी शामिल था और चीन से भी यही वादा किया गया कि उसे जर्मन अधिकृत क्षेत्र शान्तुंग लौटा दिया जाएगा। अप्रैल, 1917 में संयुक्त राज्य अमेरिका भी इसमें शामिल हो गया। रूमानिया पहले से ही इसमें शामिल था, परंतु रूसी क्रांति के पश्चात् रूस इससे बाहर हो गया क्योंकि साम्यवादी सरकार, पूँजीवादी युद्ध में अधिक समय तक रहने के लिये तैयार नहीं थी। इस युद्ध में मित्र राष्ट्रों के समूह में कुल 22 देश शामिल थे।


        संयुक्त राज्य अमेरिका इस युद्ध में क्यों शामिल हुआ?

        संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन एवं फ्राँस में अपने बाजार की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध था।


        तात्कालिक कारण

        • जर्मनी ने मैक्सिको को यूएसए के विरुद्ध युद्ध के लिये भड़काते हुए, साथ ही अपनी सहायता का आश्वासन देते हुए एक टेलीग्राम भेजा, परंतु यह टेलीग्राम ब्रिटेन के हाथ लग गया और उसने इसे संयुक्त राज्य अमेरिका को दे दिया।
        • जर्मन पनडुब्बी ने एक ब्रिटिश यात्री जहाज को डुबो दिया, जिसमें बड़ी संख्या में अमेरिकी नागरिक भी थे।


        प्रथम विश्वयुद्ध को एक संपूर्ण युद्ध क्यों माना जाता है?

        • इसमें सैनिकों के साथ-साथ बड़ी संख्या में सिविल नागरिकों की भी भागीदारी रही।
        • इस युद्ध का भौगोलिक प्रसार बहुत अधिक था। यह केवल यूरोप में ही नहीं, बल्कि अन्य महाद्वीपों में भी लड़ा गया तथा भूमि एवं समुद्र, सभी क्षेत्रों में संघर्ष चले।
        •  इस युद्ध का काल भी अपेक्षाकृत दीर्घ रहा। फिर यह केवल सैनिकों का युद्ध नहीं था और न ही केवल इसके लिये सैनिक तैयारी पर्याप्त थी, बल्कि यह संसाधनों का भी युद्ध था। इसलिये जिस देश के पास जितना अधिक संसाधन होता, वह इस युद्ध में उतना अधिक टिक पाता।
        • इस युद्ध के मध्य सैनिक संसाधनों के साथ-साथ उद्योगों तथा अन्य आर्थिक केंद्रों को भी निशाना बनाया गया। इसलिये इस युद्ध के मध्य अभूतपूर्व रूप में आर्थिक क्षति हुई।
        • यह किसी भी युद्धरत् राष्ट्र के संपूर्ण राष्ट्रीय प्रयास का नतीजा था। बड़ी संख्या में पुरुष सैन्य मोर्चे पर भेज दिये  गए, महिलाएँ ऑफिस, अस्पताल, शिक्षण संस्थाएँ आदि क्षेत्रों में कार्यरत् रहीं। इतना तक कि बच्चों को भी स्कूल से हटाकर उत्पादन में लगाया गया।
        • प्रथम विश्वयुद्ध के मध्य परंपरागत हथियारों के साथ- साथ नए प्रकार के संहारक हथियारों का विकास देखा गया, उदाहरण के लिये, रासायनिक हथियार और जैविक हथियार।

        प्रथम विश्वयुद्ध का यूरोपीय समाज पर प्रभाव

        प्रथम विश्वयुद्ध ने निश्चय ही एक विध्वंसात्मक प्रभाव डाला, किंतु कहीं कहीं इसका रचनात्मक प्रभाव भी देखा गया। प्रथम विश्वयुद्ध एक संपूर्ण युद्ध था। इसमें सैनिकों के साथ साथ एक बड़ी गैर सैनिक जनसंख्या को भी भागीदारी रही। अतः स्वाभाविक रूप में इसने यूरोपीय  जीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित किया |

        • प्रथम विश्वयुद्ध के मध्य यूरोप के कुछ पुराने राजवंशों का अंत हुआ, यथा- हैब्सबर्ग वंश, रोमनावो वंश, होहेनजोर्लन वंश। इसके परिणामस्वरूप प्रजातांत्रिक विचारों को बल मिला।
        •  किंतु, दूसरी तरफ फासीवादी विचारधारा का विकास भी प्रथम विश्वयुद्ध की देन था। विक्षुब्ध जर्मन एवं इटालियन राष्ट्रवाद क्रमशः नाजीवाद और फासीवाद के रूप में उदित हुआ।
        • प्रथम विश्वयुद्ध ने युद्ध प्रेरित व्यापार को प्रोत्साहन दिया, किंतु युद्ध के पश्चात् अर्थव्यवस्था को धक्का लगा। फिर *1920 के दशक के अंत में यूरोपीय अर्थव्यवस्था में एक प्रकार का असंतुलन उत्पन्न हो गया, जो विश्व आर्थिक मंदी के रूप में प्रकट हुआ।
        • प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में आर्थिक पुनर्निर्माण आरंभ हुआ। इसके साथ कई प्रकार की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की शुरुआत हुई। इन समस्याओं का सामना करने के क्रम में यूरोपीय सरकारों की शक्ति बढ़ गई तथा मानव स्वतंत्रता नियंत्रित हुई।
        • युद्ध के समय पुरुष जनसंख्या युद्ध मोर्चे पर गई, इसलिये उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ गई। फैक्ट्री एवं अन्य उत्पादन केंद्रों पर महिलाओं की व्यापक भागीदारी हुई। आर्थिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी ने उनकी सामाजिक स्थिति को प्रभावित किया। इसलिये प्रथम विश्वयुद्ध के बाद महिलाओं के राजनीतिक एवं सामाजिक अधिकारों में वृद्धि हुई। महिलाओं के बीच मताधिकार का विस्तार हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद नारीवादी आंदोलन का उद्भव भी देखा गया।
        • प्रथम विश्वयुद्ध ने परिवारों को गहरा धक्का पहुँचाया। पति-पत्नी और बच्चे, सभी एक-दूसरे से अलग हो गए। पुरुष युद्ध मोर्चे पर चले गए, महिलाएँ फैक्ट्री एवं अन्य उत्पादन केंद्रों पर काम करने लगीं, वहीं बच्चे भी अपने अध्ययन को बीच में स्थगित कर युद्धास्त्रों की फैक्ट्री में काम करने लगे।
        • प्रथम विश्वयुद्ध के मध्य रासायनिक और जैविक हथियार जैसे युद्ध के नए नए उपकरण विकसित हुए। इनके द्वारा बड़ी संख्या में मानव का विनाश किया गया। इस सच्चाई ने यूरोपीय सभ्यता की आंतरिक कमजोरियों को उजागर कर दिया। स्वतंत्रता एवं बंधुत्व जैसे नारे को तार तार कर दिया गया।
        • प्रथम विश्वयुद्ध के बाद तर्कवाद एवं मानव विवेक की अवधारणा को धक्का लगा। दूसरी तरफ, संशयवाद की अवधारणा को बल मिला। इसके अतिरिक्त आस्था एवं  भावना जैसे कारकों पर भी विशेष बल दिया जाने लगा। "यह मनोभाव समकालीन साहित्य एवं कला में भी अभिव्यक्त हुआ।


        प्रश्नः यह कहना कहाँ तक सही है कि प्रथम विश्वयुद्ध आवश्यक रूप से शक्ति संतुलन के संरक्षण के लिए लड़ा गया था?

        उत्तरः- 

        प्रथम विश्वयुद्ध जटिल परिस्थितियों की उपज था। यह 19वीं सदी की आर्थिक राजनीतिक संरचना में उत्पन्न अंतर्विरोधों का परिणाम था। इस अंतर्विरोध को उत्पन्न करने में शक्ति संतुलन के बिगड़ने जैसे कारक की निश्चय ही महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. परन्तु इसके साथ कुछ अन्य कारक भी जुड़े हुए थे।

                     यूरोप का शक्ति संतुलन बहुत हद तक जर्मन क्षेत्र के विभाजन पर टिका हुआ था इसलिए जर्मनी के एकीकरण ने यूरोप के शक्ति संतुलन को लगभग ध्वस्त कर दिया। ब्रिटेन के महाद्वीपीय राजनीति में लौटने तथा जर्मनी के विरूद्ध गठबंधन बनाने का एक प्रमुख कारण रहा था शक्ति संतुलन को संरक्षित करने का प्रयास। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डिजरैली के शब्दों में, जर्मनी के एकीकरण ने फ्रांस की क्रांति से भी बड़ा प्रभाव पैदा किया था।

             परन्तु इसके साथ कुछ अन्य मुद्दे उभरते चले गए। इन्हीं में एक प्रमुख मुद्दा था बाल्कन क्षेत्र का मुद्दा बाल्कन क्षेत्र में अखिल स्लाववादी आन्दोलन ने ऑस्ट्रिया तथा सर्बिया के बीच अत्यधिक तनाव उत्पन्न कर दिया था। रूस का समर्थन सर्बिया के साथ रहा था। अतः जैसे ही जर्मनी का समर्थन सर्बिया के शत्रु राष्ट्र ऑस्ट्रिया के साथ हुआ, बाल्कन का मुद्दा एक अखिल यूरोपीय मुद्दा बन गया। इसके अतिरिक्त फ्रांस एवं जर्मनी के बीच तनाव का एक मुद्दा चार दशक पूर्व से फ्रैंकफर्ट की सन्धि से ही चला आ रहा था। फ्रांस एक बार फिर यूरोपीय राजनीति में पुनर्स्थापित हो, इसके लिए जर्मनी की पराजय आवश्यक थी। इसलिए फ्रांस एक वृहद् यूरोपीय गठबंधन में शामिल होकर अपनी जनसांख्यिकी एवं संसाधनों की सीमा से उबरने का प्रयास कर रहा था। इस तरह, बीसवीं सदी के आरंभिक दशक में युद्ध का माहौल कायम था, तभी सेराजेवो हत्याकांड ने एक अनजान उत्प्रेरक की भूमिका निभा दी।

                    उपर्युक्त तथ्य यह दर्शाते हैं कि प्रथम विश्वयुद्ध के पीछे शक्ति संतुलन का मुद्दा एक महत्वपूर्ण मुद्दा था, परन्तु यही एक मात्र मुद्दा नहीं था। इससे पूर्व भी यूरोप में शक्ति संतुलन के संरक्षण का मसला आया था, यथा- लुई चौदहवें तथा नेपोलियन के काल में तथा इसके पश्चात् क्रीमिया के युद्ध के समय, परन्तु अगर बीसवीं सदी के आरंभ में यह विश्वयुद्ध का मुद्दा बना, तो इसलिए क्योंकि इसके साथ और कई क्षेत्रीय मसले जुड़ गए थे।


        सोच के लिए तथ्य 

        1. 19वीं सदी को लंबी 19वीं सदी और 20वीं सदी को छोटी 20वीं सदी क्यों कहा गया है?
        2. क्या यह कहना सही है कि प्रथम विश्व युद्ध 19वीं सदी के यूरोपीय सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक ढाँचे में उत्पन्न विकृतियों की उपज था?
        3. क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि विश्व युद्धों को दो अलग-अलग युद्धों के रूप में मानने के बजाय उन्हें एक ही युद्ध के रूप में लिया जाना चाहिए जो कि 31 वर्षों तक फैला हुआ है?
        4. क्या आप इससे सहमत हैं कि प्रथम विश्व युद्ध पिछले 100 वर्षों से पश्चिम एशिया और अरब क्षेत्र में जारी है?
        5. क्या प्रथम विश्व युद्ध यूरोप में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए लड़ा गया था?


        TAG