हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति भारत के उत्तर पश्चिम में प्रवहमान सिंधु नदी से संबंधित है विदित है कि अधिकांश विदेशी यात्री और आक्रांता उत्तर-पश्चिम सिंह द्वार से ही भारत में आने वाले इन विदेशियों ने जिस देश के दर्शन किए वह सिंधु का देश था ईरान (फारस) के साथ भारत के बहुत प्राचीन काल से संबंधित थे। और ईरानी 'सिंधु' को 'हिंदू' कहते थे। [ सिंधु- हिंदू , स का ह में तथा ध का द में परिवर्तन- पहलवी भाषा प्रवृत्ति के अनुसार ध्वनि परिवर्तन]। 'हिंदू' से 'हिन्द' बना और फिर 'हिंद' में फारसी भाषा के संबंध कारक प्रत्यय 'ई' लगने से 'हिंदी' बन गया। हिंदी का अर्थ है 'हिंद का'। इस प्रकार हिंदी शब्द की उत्पत्ति हिंद देश के निवासीयों के अर्थ में हुई। आगे चलकर यह शब्द 'हिंद की भाषा' के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा।
प्राचीन हिंदी |
हिंदी
भाषा
- प्राचीन हिंदी 1100 ई० - 1400ई०
- मध्यकालीन हिंदी 1400ई० - 1850ई०
- आधुनिक हिंदी 1850ई० - अब तक
* हिंदी की आदि जननी संस्कृत है। संस्कृत
पाली, प्राकृत भाषा से होती हुई अपभ्रंश तक
पहुंचती है। फिर अपभ्रंश,
अवहट्ट से
गुजरती हुई प्राचीन /प्रारंभिक हिंदी का रूप लेती है। सामान्यतः हिंदी भाषा के
इतिहास का आरंभ अपभ्रंश से माना जाता है।
हिंदी का विकास क्रम
संस्कृत
-पाली -प्राकृत- अपभ्रंश- अवहट्ट -प्राचीन/ प्रारंभिक हिंदी
भाषा परिवार
- भाषा परिवार के आधार पर हिंदी भारोपीय परिवार की भाषा है।
- भारत में 4 भाषा परिवार- भारोपीय, द्रविड़, ऑस्ट्रिक, व चीनी-तिब्बती मिलते हैं। भारत में बोलने वालों के प्रतिशत के आधार पर भारोपीय परिवार सबसे बड़ा भाषा-परिवार है।
- हिंदी, भारोपीय/भारत-यूरोपीय के भारतीय-ईरानी शाखा के भारतीय आर्य उपशाखा की एक भाषा है।
भाषा परिवार |
हिंदी भाषी क्षेत्र
हिंदी पश्चिम में अंबाला (हरियाणा) से
लेकर पूर्व में पूर्णिया (बिहार) तक तथा उत्तर में बद्रीनाथ- केदारनाथ (उत्तराखंड)
से लेकर दक्षिण में खंडवा (मध्य प्रदेश) तक बोली जाती है। इसे हिंदी भाषी क्षेत्र
या हिंदी क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र के अंतर्गत 9 राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, व हिमाचल प्रदेश तथा 1 केंद्र शासित प्रदेश (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) दिल्ली आते हैं।
इस क्षेत्र में भारत की कुल जनसंख्या के 43% लोग रहते हैं।
हिंदी कि उपभाषाएं एवं बोलियां
बोली
एक
छोटे क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा बोली कहलाती है। बोली में साहित्य रचना नहीं
होती।
उपभाषा
अगर
किसी बोली में साहित्य रचना होने लगती है और क्षेत्र का विस्तार हो जाता है तो वह बोली न रहकर उपभाषा बन जाती है।
भाषा
साहित्यकार जब उस उपभाषा
को अपने साहित्य के द्वारा परिनिष्ठित सर्वमान्य रूप प्रदान कर देते हैं तथा उसका
एक क्षेत्र विस्तार हो जाता है तो वह भाषा कहलाने लगती है|
- एक भाषा के अंतर्गत कई उप भाषाएं होती हैं तथा एक उपभाषा के अंतर्गत कई गोलियां होती हैं।
- सर्वप्रथम एक अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने 1889 ई० में 'मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिन्दोस्तान' में हिंदी का उपभाषाओं और बोलियों में वर्गीकरण प्रस्तुत किया। बाद में ग्रियर्सन ने 1894 ई० से भारत का भाषाई सर्वेक्षण आरंभ किया, जो 1927 ई० में संपन्न हुआ। उनके द्वारा संपादित ग्रंथ का नाम है 'ए लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया'। इसमें उन्होंने हिंदी क्षेत्र की बोलियों को पांच उपभाषाओं में बाँटकर उनकी व्याकरणिक एवं शाब्दिक विशेषताओं का विस्तार से विवरण प्रस्तुत किया है।
- 1926 ई० में सुनीति कुमार चटर्जी ने 'बांग्ला भाषा का उद्भव और विकास' में हिंदी का भाषाओं और बोलियों में वर्गीकरण प्रस्तुत किया। चटर्जी ने पहाड़ी भाषाओं को छोड़ दिया है। वे उन्हें भाषाएं नहीं गिनते हैं।
- हिंदी क्षेत्र की समस्त बोलियों को 5 वर्गों में बांटा गया है। इन वर्गों को उपभाषा कहा जाता है। इन उपभाषाओं के अंतर्गत ही हिंदी की 17 बोलियां आती हैं।
देवनागरी लिपि
उच्चरित ध्वनि संकेतों की सहायता से भाव या विचार की अभिव्यक्ति भाषा कहलाती है जबकि लिखित वर्ण संकेतों की सहायता से भाव या विचार की अभिव्यक्ति लिपि। भाषा श्रव्य होती है जबकि लिपि दृश्य।- भारत की सभी लिपियां ब्राह्मी लिपि से निकलती है।
- ब्राह्मी लिपि का प्रयोग वैदिक आर्यों ने शुरू किया।
- ब्राह्मी लिपि का प्राचीनतम नमूना पांचवी सदी BC का है जो कि बौध्दकालीन है।
गुप्तकाल के आरंभ में ब्राम्ही के दो भेद हो गए हैं उत्तरी ब्राह्मी व दक्षिणी ब्राह्मी। दक्षिणी ब्राह्मी से तमिल लिपि/कलिंग लिपि, तेलुगू-कन्नड़ लिपि, ग्रंथ लिपि (तमिलनाडु), मलयालम लिपि (ग्रंथ लिपि से विकसित) का विकास हुआ।
देवनागरी लिपि को 'लोक नागरी' एवं हिंदी लिपि भी कहा जाता है।
देवनागरी का नामकरण विवादास्पद है। ज्यादातर विद्वान गुजरात के नागर ब्राह्मणों से इसका संबंध जोड़ते हैं। उनका मानना है कि गुजरात में सर्वप्रथम प्रचलित होने से वहां के पंडित वर्ग अर्थात नागर ब्राह्मणों के नाम से इसे 'नागरी' कहा गया। अपने अस्तित्व के आने के तुरंत बाद इसने देव भाषा संस्कृत को लिपिबद्ध किया इसलिए 'नागरी' में 'देव' शब्द जुड़ गया और बन गया 'देवनागरी'।
यह लिपि बाई और से दाई और लिखी जाती है।
यह न तो शुद्ध रूप से अक्षरात्मक लिपि है और ना ही वर्णात्मक लिपि है।
हिंदी भाषा का मानकीकरण
मानक का अभिप्राय है आदर्श, श्रेष्ठ अथवा परिनिष्ठित। भाषा का जो रूप उस भाषा के प्रयोक्ताओं के अलावा अन्य भाषा-भाषियों के लिए आदर्श होता है, जिसके माध्यम से वे उस भाषा को सीखते हैं, जिस भाषा-रूप का व्यवहार पत्राचार, शिक्षा, सरकारी काम-काज एवं सामाजिक-सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सामान स्तर पर होता है, वह उस भाषा का मानक रूप कहलाता है।- मानक भाषा किसी देश अथवा राज्य की वह प्रतिनिधि तथा आदर्श भाषा होती है जिसका प्रयोग वहां के शिक्षित वर्ग के द्वारा अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, व्यापारिक व वैज्ञानिक तथा प्रशासनिक कार्यों में किया जाता है।
- मानकीकरण (मानक भाषा के विकास) के तीन सोपान बोली भाषा- मानक भाषा
- किसी भाषा का बोल-चाल के स्तर से ऊपर उठकर मानक रूप ग्रहण कर लेना उसका मानकीकरण कहलाता है।